नवरात्रि के सही मायने

लो भाई फेस्टिव सीज़न की शुरुआत हो गयी है।चाहे कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म का क्यों न हो  हर तबके के लोगो को इसका बेसब्री से इन्तेजार रहता है। बच्चे को नए नए कपड़े खरीद करने की खुशी तो बड़े को सरकारी छुट्टी और बोनस इस फेस्टिव को चार चांद लगाता है।इस फेस्टिव सीजन की शुरुआत तो नवरात्रि से ही हो जाती है,छट पूजा तक चलती रहती है।

कभी कभी मन में ये सवाल भी आता है कि कोई भी व्यक्ति के जीवन मे उसके धर्म का क्या प्रभाव पड़ता है?इसपर मैं ज्यादा डिबेट तो नही करना चाहूंगा।पर इतना तो अवश्य है कि हम हिन्दू सनातन धर्म में जन्मे है इसका असर तो हमारे जीवन में अवश्य ही पड़ा है। बात करते है फेस्टिव सीजन के शुरुआत से,जिसमें
माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। हर दिन हमें माँ के विभिन्न रूपों के बारे में जानने का अवसर प्राप्त होता है।नौवे दिन नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है।जो इस नवरात्रि पूजा को और भी स्पेशल बनाता है।
यह परंपरा हमे उस भारतीय पूर्व वैदिक सभ्यता का दर्शन करता है जिसमें घोसा, लोपामुद्रा,गार्गी ने अपनी पहचान दिलायी। मगर उत्तर वैदिक काल के बाद से  महिलाओं पर अत्याचार होने शुरू हो गए थे।
महिलाओं को तो समानता के अधिकार तो दे दिए गए मगर उनका शोषण तथा उनपर अत्याचार आज भी हो रहे है।घरेलू हिंसा,दुष्कर्म तथा दहेज के कारण महिलाओं को जिंदा जला दिया जाता है।जिस देश में हम नवरात्रि पूजा इतने श्रद्धा के साथ मानते है , माँ की पूजा करते है, कन्या पूजन करते है,उस देश में ऐसी घटनाएं क्यों हो रही है ??बिल्कुल ही इसपर विचार करना होगा।नवरात्रि तो सिर्फ नौ दिन की पूजा होती है, इसके बाद क्या?क्या हमारा यह कर्तव्य नहीं बनता है कि बाकी बचे 356 दिन भी महिलाओं को उसी सम्मान से देखे? तब शायद उनपर हो रही अन्याय को रोका जा सकता है।तभी ही सही रूप में नवरात्रि पूजा सफल हो पायेगा।

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