उम्मीद

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"उम्मीद"बड़ा ही अजीब शब्द है- इसे आप "भरोसा" या "आशा" या आंग्ल भाषा में इसे "Expectation" कहते है।

उम्मीद खुद से करो तो जीना सिखाती है और किसी दूसरे से करो तो आपको कमजोर बनाती है।

जीवन के राह में कोई न कोई तो समस्या आती रहती है यदि आप किसी दूसरे से उम्मीद लगाए बैठे है कि कोई इस समस्या का समाधान करेगा तो आप से बड़ा मूर्ख इस दुनिया मे नहीं होगा। इस भौतिकवादी दुनिया में किसी से उम्मीद करना बेईमानी से लगता है। ये दुनिया लौकिक परिदृश्यों का आईना है जिसका आधार भौतिक है।
इसी कड़ी में आप किसी से उम्मीद करते है, एक सपना का संयोजन करते है , और ख़्वाबों की उड़न तस्तरी में बैठ कर दुनिया की सैर पर निकल जाते है।और ये भी पल आपके जीवन के हसीन पलों में से एक होता है।मगर जब ये उम्मीद का साथ छूटता है न तो पल भर में मानो उम्मीद की मोतियाँ से भरी माला टूट कर धरातल पर बिखर जाता है और सपना चकनाचूर हो जाता है।

मैं ये नहीं कहता कि आप उम्मीद न करें।बिल्कुल उम्मीद करें। एक कहावत है "उम्मीद पे तो दुनिया कायम है"। इसी उम्मीद के साथ तो हम जीवन के डगर पे आगे बढ़ते है।
उम्मीद करना हो तो आप खूद पे करिये। खूद में इतना साहस लाइये कि किसी की जरूरत ही न पड़े। मुझे चलचित्र "दशरथ मांझी-द माउन्टेन मैन" का वो संवाद याद आ रहा है जिसमे दशरथ मांझी ने कहा था कि आप "किसी के भरोसे मत बैठो क्या पता भगवान भी आपके भरोसे बैठे हो"।

आपका दोस्त
आलोक

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